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जिन्हे बोलना था वो चुप है




जिन्हे बोलना था वो चुप है,

क़दमों की आहटों से होता था जो दुर,

अब सुने हैं सिर्फ़ सन्नाटे,

उनकी आवाज़ दिल के क़रीब थे पहले, अब खामोश है।


इस दुनिया की शोर में, वो एक आवाज़ हमारी थी,

सपनों की मिठास और खुशियों की धड़कन,

अब वो अनजान हैं, खो गई उनकी गुज़रिशें,

बस कुछ यादें हैं, जो हवा की तरह महसूस करके गुजरती हैं।


कोहरा है यादों का, दिल के आईने में छुपी,

डूँघला है सब, सियाह रातों में गुम हैं हम,

पर उनकी आवाज़ की छाया फिर भी है,

जैसे सपनों का एक सफर, एक प्यारा सा धड़कन है हमारे दिल में।


वो आवाज़, जो हमारी राहों में बसी थी,

अब उसकी गहराईयों में हम कैसे जा सकते हैं?

वो बिन बोले भी हमसे बात करती थी,

अब वो एक सिर्फ़ ख़याल है, हमारे इंतज़ार का इक विशेष वक्त है।


जब भी हवा बहकर आती है वो यादों के ख़रगोशों को,

हम उनकी आवाज़ को सुनते हैं दिल की गहराइयों में,

जैसे कि वो हमारे साथ हैं, हमारे पास हैं,

उनके बिना हमारी दुनिया अधूरी सी लगती है, बस ये ख्याल है हमारे दिलों में।


जिन्हे बोलना था वो चुप है,

लेकिन उनकी आवाज़ हमारे सपनों में है,

वो ख़ामोशी के पीछे छुपी है ख़ुशियों की बहार,

जैसे कि वो हमारे साथ हैं, हमारे पास हैं, हमारे दिल की धड़कन हैं, और हम उन्हें कभी नहीं भूल सकते।


लेखक : कुमार

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