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जागे हैं देर तक, हमें कुछ देर सोने दो,

Updated: Aug 1, 2023


कई दिनों के बाद, गुरु 2007 की फिल्म से प्रसिद्ध गाने "जागे हैं" के सुरों को सुना । इस गाने के बोल गुलज़ार साहब द्वारा रचे गए हैं, जिनकी कविता की एक अद्भुत है। गुलज़ार साहब की शानदार शब्दचयनी के साथ, यह गीत सुनने वाले को जीवंत कर देता है और उसकी रूह को छू जाता है।


इस अद्भुत गाने ने मेरे अंतर्मन को हिला दिया और मुझे प्रेरित किया अपना खुद का "जागे हो" बनाने का। इसमें मैंने अपनी भावनाओं को बांध दिया, और गाने के मोहक धुन पर अपने शब्द झलकने की कोशिश की। मेरे द्वारा रचित इस नए कविता में, जीवन की रौनक को जगाने की कोशिश की गई है और उम्मीद है कि आप इसे पढ़कर आनंद लेंगे।


जागे हैं देर तक, हमें कुछ देर सोने दो,

थोड़ी सी रात और है, सुबह तो होने दो।

आधे अधूरे ख्वाब जो पूरे न हो सके,

एक बार फिर से नींद में वो ख्वाब को सजाने दो।


धुंधली सी राहों में खो जाते हैं हम,

ख्वाबों के बीच खो जाते हैं हम।

जीवन के सफर में उलझनों की भरमार,

इस उधारी रात में खो जाते हैं हम।


प्यार के जज़्बात, रिश्तों की बंधनों में बांध जाते हैं हम।

हैरानी में भटक जाते हैं हम।

आँखों में सपनों के गहरे समंदर,

जज़्बातों के तूफ़ान लहराते हैं हम।


परिंदों की तरह खुल के उड़ने की चाह से,

आसमान के ऊँचाइयों पर चढ़ जाते हैं हम।

जीवन के सफर में जो साथ आते हैं,

उन ख्वाबों को पूरे करने में लग जाते हैं हम।


एक बार फिर से नींद में वो ख्वाब को सजाने दो।

हर राह पर चलते हुए, हर पल बिताते हुए,

जीवन के सफर में, खो जाते हैं हम।


आशाओं के दरिया में बहते हुए,

ख्वाबों के सागर में डूब जाते हैं हम।

कुछ पल कट जाएं भी, बस तुम साथ रहो,

जीवन के सफर में आगे बढ़ते जाते हैं हम।


आधे अधूरे ख्वाब जो पूरे नहीं हो सके,

फिर से नींद में वो ख्वाब सजाने दो।

दर्द भरी रातों में जो अँधेरा छाए,

उस अँधेरे को दिन में रौशनी बनाने दो।


उम्मीदों की किरणों से जब जीना हो,

ख्वाबों को हकीकत में जीने दो।

हार नहीं मानने की दास्तां कहें,

ख्वाबों के परचम को फहराने दो।


जब तक जीवन की राहों में साथ रहें हम,

हर यूँ ही सांसों में वो ख्वाब बसाने दो।

अधूरी सी यादों को साथ लेकर,

पलकों की चुपचापी में समाने दो।


कुछ अनसुने गीत हैं जो सुनाने हैं,

उन गीतों को सपनों में भुलाने दो।

जब तक जीवन की राहों में साथ रहें हम,

हर उधारी हुई सांसों में वो ख्वाब बसाने दो।


आधे अधूरे ख्वाब जो पूरे नहीं हो सके,

फिर से नींद में वो ख्वाब सजाने दो।


कुमार




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