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कुछ अनसुनी रचना आप के लिए

Updated: Aug 24, 2023

लेकिन मैं तुझसे रुठा नहीं हूँ जिंदगी, बस थोड़ी सी नाराज हूँ।
लेकिन मैं तुझसे रुठा नहीं हूँ जिंदगी, बस थोड़ी सी नाराज हूँ।
लेकिन मैं तुझसे रुठा नहीं हूँ जिंदगी, बस थोड़ी सी नाराज हूँ।

मैं क्या नहीं कर सकता, ये मत पूछ,मुझसे जिंदगी,

कर सकता हूँ तो बहुत कुछ, पर ये जिम्मेदारियाँ मुझे रोक रही हैं, जैसे फूलों की जंजीर है ।

माना कि तूने मुझे बहुत मौके दिए, रास्ते दिखाए,

दोस्त दिलाए, दुश्मन बनाए, पर सब कुछ तैर करना का ज़िम्मा मुझ पर छोड़ दिया।

गलती करूँगा मैं, ,ये जानते हुए भी तूने मुझे रोका नहीं।


लेकिन मैं तुझसे रूठा नहीं हूँ जिंदगी, बस थोड़ी सी नाराज हूँ।

मुझे तकलीफ इस बात की है कि जब भी मैंने जो रास्ते चुने जो मुझे सही लगे,

पर वो अंत में मुझे उस चौराहे पर खड़ा कर देते हों, जहाँ से तीन नए रास्ते निकलते हैं।

उन तीनों में से एक चुनना, वही सबसे बड़ी मुश्किल है।

और वहाँ खड़ा होकर मैं समझता हूँ कि जिंदगी कितनी अजनबी है।

जिसे मरी ज़िन्दगी मेरा जीवन अलग अलग शब्दों में मेरा कह था था वही अजनबी बन गया।


जिनसे मिलकर उन के साथ कुछ वक्त गुजार ना था, उनको तूने दूर किया।

जिन लोगों से दूर होना था, उन्हें नज़दीक किया।

बस रहना था माँ की आँचल में, दूर किया आँचल को पढ़ाई और नौकरी की तलाश में.

जिन चार अपनों को खुश करने के लिए किया खुब पढ़ाई, और दिल लगा कर की नौकरी,

आज पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो,

वही चार अपने मुझसे दूर हो गए इस जिंदगी के दौड़ में,

न मैं समय दे पाया उन्हें, न मैं घुल मिल सका उनसे।


बस दौड़ रहा हूँ उसी दिश में जो जिंदगी,राह दिखा रही हो।

बस आ खड़ा हु ज़िंदगी उसी नए चुराहे पे जहा से नए तीन रस्ते निकलते है

अब बस ज़िंदगी तुजसे गुज़ारिश है की रास्ते सही चुन में मदत कर देना।

क्योकि उम्र को डाव पे लगा के चुन रहा हु नया रास्ता जो तू दिखा रही है

मुझे पता ही की अंत में तुम मुझे फिर उसी चुराहे पे खड़ा करोगे पर गुज़ारिश इतनी है


जो रातसा अब चुना है वो सफर थोड़ा लमबा और सुगम हो जाये

जिनसे भी तू मिलाये मुझे सही गलत का फर्क देख ने मौका दे

दिल दे बैठ ने से पहले ,थोड़ा दिमाग सोच ने लिए वक़्त दे

अपनों के दिल दुखने से पहले मुझे डाँट दे जरा सी।

राह में जो भी हो, मुझे हार नहीं मानने का हौसला दे।

जिन लम्हों में खोना चाहूं, वहाँ थोड़ी सी मुस्कराहट और प्यार दे।

सपनों को छूने की उमंग है, उन्हें सच करने की ताकत दे।

जो प्यार तूने दिया है मुझे, वैसा ही विश्वास और समर्पण मुझ में आने दे।

मैं ज़िंदा रहु ज़िंदादिली से वैसा हौसला भरा दिल मुझे दे ।

मासूम हु मैं मेरे मासूमियत को परिपाक(प्रौढ़ता) में बदलाव न कर दे।


बस इतनी सी गुज़ारिश है ज़िन्दगी तुजसे। तुझसे रुठा नहीं हूँ जिंदगी, बस थोड़ी सी नाराज हूँ में ।


खुश रहे सदा

लेखक :कुमार



मैं किताब हूँ, वक़्त मांगती हूँ
मैं किताब हूँ, वक़्त मांगती हूँ
मैं किताब हूँ, वक़्त मांगती हूँ

कभी याद रखना हमने तुम्हें पढ़ना सिखाया, लिखना सिखाया।

इंसानियत सिखाई, जीने का सलीका सिखाया। पर तुम भूल गए हो, तुम हमें भूल गए हो।

तुम ना जान सको के जीवन के रहस्य मेरे बिना।


मैं किताब हूँ, वक़्त मांगती हूँ। धीरे धीरे समझ में आती हूँ, पर दिल में उतना ही गहरा उतरती हूँ।

मेरी कहानियों से तुम्हें कल्पना करने लगते हो, तुम्हारे हिसाब से किरदार चुनने का मौका देती हूँ।

तुम्हें हंसाती हूँ, अकेले में रुलाती भी हूँ, याद दिलाती हूँ तुम्हें किस्से।


चार लोगों के बीच में बोलने की क्षमता देती हूँ तुम्हे । ताक़त बनती हूँ तुम्हारी।

थोड़ा बहार औ अभी जरा इस मोबाइल की दुनिया से.स्क्रीन की चमक में ना खो जाओ,

मेरे पन्ने पलट के असली जीवन को पहचानो।


मैं किताब हूँ, तुम्हारा सच्चा दोस्त, जो तुम्हें दिखाता है असली रास्ता।

जब भी अकेला महसूस करो, या सच्चाई तलाशों, मेरी तरफ देखो, मैं हमेशा तुम्हारे पास हूँ,

तुम्हारे साथ हूँ।


जब जग में चारों ओर सिर्फ शोर हो, मेरे पन्नों में ढूंढो वो मिठास और सुकून का अहसास।

डिजिटल जगत में सब कुछ तुरंत मिले, पर अधिकार और गहराई कहाँ? मैं तुम्हें देता हूँ

जीवन के उस पाठ को, जिसे मोबाइल का स्क्रीन नहीं सिखा सकती।


जब तुम्हें लगे कि सब कुछ हो चुका, जब उम्मीद की किरण खो जाए, मेरी तरफ मुड़ो,

मैं तुम्हें एक नयी शुरुआत और एक नई सुबह दिखाऊंगा।

जब तक मेरे पन्ने हैं, जब तक मेरी कहानियाँ बाकी हैं,

तुम्हारे संघर्ष और प्रेरणा का स्रोत हमेशा मैं बनूँगा ये वादा कित्ताब का यूमसे है.


बस भूल गए हो मुझे तुम लौट औ पलटो मेरी पन्नो को और समझा शब्दों की गेहरायोयों को

खो जाओ मुझ में जरा सी। छाए जितना भी वक़्त मुझे पढ़लो मेरी बैटरी नहीं उतर ने वाली है


बस मैं किताब हूँ, वक़्त मांगती हूँ, वक़्त निकल ने की तमन्हा युम्ह में हो बस.


खुश रहे सदा

लेखक :कुमार



खुद से पूछूं कि तलाश है तो किस चीज़ की है इस ज़िंदगी में?
खुद से पूछूं कि तलाश है तो किस चीज़ की है इस ज़िंदगी में?
खुद से पूछूं कि तलाश है तो किस चीज़ की है इस ज़िंदगी में?

खुद से पूछूं कि तलाश है तो किस चीज़ की है इस ज़िंदगी में?

हर तलाश आखिर में रुक जा रही है बस तन्हाईयाँ बन के।

ढूंढ के जो मिला, वो मिल के भी खुशी ना लगी,

उम्र गवा के जो मिला, उसके मिलने पर भी खुशी नहीं मिली।


वैसे खुशियाँ तो बहुत हैं इस दुनिया में हमारे साथ,

पर ग़म को ये समुंदर क्यों दूर दिखाई दे रहा है।

कभी-कभी मुझे लगता है, थोड़ी सी खुशियों की तलाश में,

हम दुनिया के ग़ाम झेलने को तैयार हैं।


दुःख में भी खुद को झूठी तसल्ली दे रहा हूँ मैं,

मेरा जीवन से लगाव ऐसा ही जैसा एक अंधा देखे जीवन की रोशनी,

प्रकाश की पहचान, उसकी अद्भुत कहानी।


अज्ञानता में छुपा है दिल और दिमाग के रिश्ते का राज,

जब ना पता हो, सब कुछ लगे आसान साज।

जीवन को ज्यादा जानने पर, ज्ञान के पाठ पर, होते हैं कदम थम,

संकोच में बदल जाती हर उमंग वहाँ।

ज्ञान की गहराई में, कदम फिसलने लगे जो अधिक जानने पर,

हमें अपनी अज्ञानता से प्यार आये।


बस भूल गए हम।

जीवन एक पहेली, सच और भ्रांति का खेल, हर क्षण में खोज में अपना आदान-प्रदान।

जीवन की गहराई में छुपे अनगिनत राज, जैसे अंधेरे में भी, जलती एक अदृश्य दिया।

हम सोचते हैं ज्ञान से सब कुछ है स्पष्ट, पर जीवन अक्सर दीखता है अज्ञान की मस्ती में।

जो चीज हम नहीं जानते, उसमें है साहस, और जो समझते हैं, वही बन जाता विशेष।

ज्ञान की चोटी पर, हम अकेला महसूस करते, अज्ञान में हमें उम्मीदों की खोज फिरती।


हर दिन नया पाठ, हर रात नई धारा, जीवन, एक अद्वितीय किताब, जो अब तक अधूरी हमारा।


खुश रहे सदा

लेखक :कुमार


सपने वह जगह, जहाँ जीवन की नहीं, मन की बात गूँजती है।
सपने वह जगह, जहाँ जीवन की नहीं, मन की बात गूँजती है।
सपने वह जगह, जहाँ जीवन की नहीं, मन की बात गूँजती है।

हमें नींद क्यों प्यारी? उसमें बहुत सी कहानियां बाँधी।

जिसमें हजारों सपने, चुपके से गुजारते हर शब्द ।

मेरी रोज़मर्रा की दौड़-धूप में खोता जो हूँ मैं,

सपनों की वो ठांडी छाँव में पा लेता हूँ मैं आंगन।


हर रंग, हर भाव, सपनों के पर्दे पर हर चीज़ समान

ना कोई सीमा, ना ऊँच-नीच, सब कुछ वहाँ अनदेखा अनसुना।

जहाँ उलझनें भी संग ले आयें नई राहतें,

मेरे सपनों का जहाँ, सब कुछ है बेहद सरल और सुरीला।


वहाँ मिलते हैं वो चेहरे, जो असल में छूना मुश्किल,

सपनों की गलियों में, हर राज़ अब है अनकहा, अनछूआ।

ना डर, ना संकोच, मेरे वाणी में वहाँ,

क्योंकि सपने वह जगह, जहाँ जीवन की नहीं, मन की बात गूँजती है।


घूम लेता हूँ जग की हर गली, हर बाजार,

वहाँ की आज़ादी में, मैं हूँ सजीव तारा, निरंतर चमकता।

मेरे सपनों की दुनिया देती है अद्भुत शक्तियाँ,

जहाँ मैं अपने ही खेल में, बिना बोझ, बिना बाँधन हूँ अदृश्य पंखी।


असल जगत में कई सीमाएँ, कई दीवारें खड़ी,

लेकिन सपनों की वो दुनिया, जहाँ हर रोज़ नई कहानियाँ बुनता हूँ मैं।


सपनों में वो नदियाँ बहती, जिनका कोई किनारा नहीं,

अनगिनत ख्वाबों का समंदर, जिसका कोई पारा नहीं।

वहाँ प्यार की बहारें खिलती, हर मोड़ पर नई बहारें।

सपनों की वो गलियाँ, जहाँ हर रास्ता खुदा से प्यारा।


आसमान में उड़ने के ख्वाब, जमीं पर पैर नहीं,

सपनों में वो खुदा से मिलन, जिसका असल में डर नहीं।

हर दरवाज़ा खुला रहता, हर मंजिल पास लगती,

सपनों की जो दुनिया है, वहाँ हर बात अद्वितीय और मिठास भरी।


सपनों का जादू ही कुछ ऐसा, बिना शब्दों, बिना बातों,

जहाँ हर ख्वाब हकीकत में बदलता, और हर ज़ज्बात में है मिठास।

क्योंकि सपने वह जगह, जहाँ जीवन की नहीं, मन की बात गूँजती है।

और दिल सब कुछ देख के भी अनजान रहता है।


खुश रहे सदा

लेखक :कुमार



कब तक लेगा तू सांस ज़िन्दगी ,ये शरीर कितनी देर तक डटे रहेगा?
कब तक लेगा तू सांस ज़िंदगी, ये शरीर कितनी देर तक डटेगा रहेगा?
कब तक लेगा तू सांस ज़िंदगी, ये शरीर कितनी देर तक डटेगा रहेगा?

कब तक लेगा तू सांस ज़िंदगी, ये शरीर कितनी देर तक डटेगा रहेगा?

क्या साँसें चलना ही ज़िंदगी का सबूत है?


क्या मायने रखता है बहुत पैसे, इज्जत कमा के?

-पैसा इज्जत और इज्जत, तो साथ आनेवाले नहीं आखिर में।

क्या मायने रखता है, भरपेट खाऊं या व्यायाम करूं, उपवास करूं?

-बीमारी तो निश्चित है, इस शरीर को कभी न कभी।


ये पल भर में मिटने वाली चीजें, मुझे क्यों इतना लगाव है?

क्यों न मैं उन चीजों के खोज में लग जाऊं, जो शाश्वत हैं।

क्यों न मैं ढूंढूं वह जो खर्च करने पे भी न चुके।


क्यों न मैं उस अवस्था में पहुंचूं, जहाँ से मुझे कोई न निंदा कर पाए।

क्यों न तीन दिन के बच्चे की तरह, सभी मुझे प्यार की नजर से देखें।

क्यों न जैसे सागर में हजारों लहरें जुड़ती हैं, मैं भी वैसा बन जाऊं।


मौत तो आना ही है, डर इससे नहीं है।

बस ग़म इस बात का है, जो बनने के लिए थे, वह बन न पाए।

बस ग़म इस बात का है, वास्तव में जीना पाए नहीं पूरी ज़िंदगी में।


जलाऊं मैं आग सिने में, जो कुछ विराट जूनून को पाने में।

खोज है तो उसी की, जिसमें खुद को मिटा के, मैं पूरी तरह से मिठ जाऊं।

मैं सिर्फ वजूद में नहीं हूं, इसके अलावा भी एक मैं हूँ।

जानना है उसे, तहे दिल से।


तो मैं अब खुद से कहता हूं, जी भर के बार-बार, जीओ वह जीवन,

जिसके लिए तुम आए हो इस धरती पे।


जानना है उसको,जो सिर्फ मेरी वजूद में नहीं, उसके परे भी है, तहे दिल से।


खुश रहे सदा

लेखक :कुमार


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